जन्माष्‍टमी 2017: जन्माष्टमी पढ़ें व्रत कथा | 5Anjabi - 5anjabi

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Tuesday, August 15, 2017

जन्माष्‍टमी 2017: जन्माष्टमी पढ़ें व्रत कथा | 5Anjabi


श्रीकृष्ण जन्माष्‍टमी के अवसर पर भजन-कीर्तन और पूजा पाठ के साथ व्रत करने का विशेष महत्व है। इस दिन हर भक्त व्रत रखकर ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह धरती पर अवतरित होकर कंश जैसी बुराइयों का सर्वनाश करें। मान्यता है कि कंश के प्रताड़ना से परेशान हो चुके भगवान कृष्ण के माता-पिता देवकी और वासुदेव को जेल में एक-एक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा था। जिस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ उस दिन मां देविकी और भगवान वासुदेव ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। वह पूरे दिन खाली पेट रहकर भी ईश्वर से प्रार्थना करते रहे कि उन्हें इस मुश्किल से छुटकारा मिले। उनके इसी दुख में शामिल होने के लिए नगर के बहुत से लोगों ने उपवास किया और भगवान से प्रार्थना की। यही कारण है कि आज भी भक्तगण श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर व्रत करते हैं।

आगे पढ़ें जन्माष्टमी व्रत कथा-
स्कंद पुराण के अनुसार द्वापर युग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन राज करते थे। राजा उग्रसेन को उनके पुत्र कंस ने गद्दी से हटाकर खुद राजा बन गया। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामके व्यक्ति से हुआ था। ​कंस देवकी से बहुत प्रेम करता था। जब देवकी की शादी वसुदेव जी से हुई तो कंस काफी दुखी हुआ और खुद ही रथ हांककर बहन को ससुराल विदा करने जाने लगा। लेकिन तभी आकाशवाणी हुई, 'हे कंस! जिस देवकी को तु बड़े प्रेम से विदा करने जा रहा है उसका आठवां पुत्र ही तेरा काल होगा।यह सुन कंस क्रोधित हो उठा और उसने देवकी के बाल पकड़कर रथ से नीचे फेंक दिया। अगली स्लाइड में पढ़ें पूरी कथा-
कंस ने सोचा अगर मैं इसे ही मार दूं तो इसका पुत्र ही नहीं होगा और ना ही मेरी मौत। कंस को ऐसा करते देख वासुदेव क्रोधित हुए लेकिन वह इसके हल के रूप में कंस को सुझाव दिया कि तुम्हें देवकी से डरने की कोई जरूरत नहीं है, समय आने पर मैं तुम्हें खुद देवकी की आठवीं संतान सौंप दूंगा। 
उनके समझाने पर कंस का गुस्सा शांत हो गया। कंस जानता था कि वसुदेव झूठ नहीं बोलते थे। कंस ने वसुदेव जी की बात मान ली और वसुदेव व देवकी को कारागार में बन्द कर दिया और सख्त पहरा लगवा दिया।
आठवें पुत्र के रूप में जन्मे श्रीकृष्ण
समय आने पर कंस ने एक-एक कर देवकी की सातों संतानों को मार दिया। जब आठवें संतान का समय आया तो कंस ने पहरा कड़ा कर दिया। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी। 
बालक का जन्म होते ही जेल में बंद देवकी के कमरे में तेज प्रकाश हुआ और सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने वसुदेव से कहा कि मैं ही बालक रूप में तुम्हारी संतान के रूप में आया हूं। तुम मुझे अभी इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में छोड़ आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस को दे दो।' 
अपने आप ही खुल गई थीं बेड़ियां
यह आदेश सुनकर वसुदेव नवजात शिशु को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। रास्ते में हो रहे चमत्कारों को देख कर वह बेहद दंग थे जैसे पहरेदार अपने आप ही सो गए, उनके हाथों में पड़ी बेड़ियां खुल गई, उफनती हुई यमुना नदी भी उनके लिए रास्ता दे रही थी। यमुना नदी को पार कर वसुदेव ने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। 
भगवान कृष्ण द्वारा कंस का अंत
जब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है तो उसने उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और बोली 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' यह सुनकर कंस बेहद क्रोधित हुआ। उसने कई बार बालक कृष्ण को मारने का प्रयास किया लेकिन ऐसा कर नहीं पाया, अंत में जब भगवान कृष्ण युवावस्था में पहुंचे तब उन्होंने कंस का वध किया।